पुरुषार्थ से व्यक्तित्व में आता है निखार - आचार्य नंदकुमार चौबे

रायपुर
इस संसार में जन्मा कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं है, जिसके जीवन में कभी विपरीत परिस्थितियां नहीं आई हों। हर व्यक्ति के जीवन में स्थितियां बदलती रहती हैं। कभी सुख आता है, तो कभी दुख आता है। परिवर्तन एक समय चक्र है। जैसे घड़ी में समय कभी भी एक सा नहीं होता, वो बदलता रहता है वैसे ही हमारे जीवन में भी बदलाव होता रहता है। उक्त विचार दूधा धारी मठ के सत्संग भवन में चल रही भागवत ज्ञान यज्ञ कथा में आचार्य पंडित नंदकुमार चौबे व्यक्त किया।

आचार्य चौबे ने श्रद्धालुओं से कहा कि मनुष्य को जीवन में जब किसी प्रकार की कमी नहीं रहती घर में धन, संपत्ति, मोटरकार आदि का वैभव होता है, तो उसका मन बड़ा प्रसन्न रहता है। मन में किसी भी प्रकार की घबराहट नहीं रहती। इसके विपरीत जैसे ही मनुष्य के जीवन में स्थितियां बदलती हैं विपन्नता आती हैं, संकट आता है, घबराहट होने लगती है और विवेक शून्य होने लगता है। सोचने समझने की शक्ति समाप्त होकर व्यक्ति कर्तव्यविमूढ़ हो जाता है। विपरीत परिस्थितियों का सामना करने में असमर्थ हो जाता है, धैर्य खो देता है। ऐसी स्थिति में घबराने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि साहस का परिचय देते हुए पुरुषार्थ करन चाहिए। आचार्य चौबे ने कहा कि श्री मद् भागवत पुराण में कथा आती है कि स्वर्ग के रहने वाले देवगण सभी प्रकार की सुख सुविधाओं का अनुभव करते थे।

एक दिन दुवार्सा ऋषि ने देवराज इन्द्र के गले में दिव्य पुष्प की माला पहनाकर उनका सम्मान करके चले गए। देवराज इन्द्र ने आशीर्वाद स्वरुप दी गई माला के महत्व को नहीं समझते हुए उसका अपमान कर दिया। इसके कारण देवता श्रीहीन, लक्ष्मीहीन होकर वन-वन भटकते हुए भगवान विष्णु की शरण में जा पहुंचे। वहां उन्होंने अपनी समस्याओं के समाधान के लिए प्रार्थना की। तब विष्णु भगवान ने समुद्र मंथन करने की सलाह दी। जिसे स्वीकार करते हुए देवताओं ने दैत्यों के सहयोग से समुद्र मंथन किया और प्राप्त हुए अमृत को पी करके हमेशा के लिए अमर हो गए। देवताओं ने विपरीत परिस्थिति में भी धैर्य का परिचय देते हुए पुरुषार्थ किया, जिससे देवताओं के व्यक्तित्व में निखार आ गया। कहने का तात्पर्य यह है कि मनुष्य को किसी भी परिस्थिति में निराश नहीं होना चाहिए, बल्कि पुरुषार्थ करते रहना चाहिए।

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Name: धीरज मिश्रा (संपादक)

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